लेखनी प्रतियोगिता -30-May-2022 बहती रहे समय की धारा
बहती रहे समय की धारा
बहती रहे समय की धारा,
समय बड़ा अलबेला न्यारा।
सुख दुख तो आते जाते रहते,
कठिन समय है ना घबराना।
जीवन एक समंदर देखो,
तूफानों को उठकर है जाना।
सुख में तू अभिमान है करता,
फूला फूला हरदम घूमे।
किसी की कोई कीमत ना समझे,
बहती रहे समय की धारा
समय कहां किसके लिए रुकता,
समय के साथ सब बदलता।
कुछ तो तुम इंतजार करो,
बीज समय पर वृक्ष बनता।
कर्मों का फल कहां मिलता है,
अच्छे बुरे तो दिन है जीवन के।
कोई दिन हो गुलाब के जैसा,
कभी बितता कांटो में जीवन।
बहती रहे समय की धारा
मन में हो शुभ संकल्प तुम्हारे,
कर्म करोगे उत्तम हरदम।
उन्नत पथ तुमको है मिलता,
नाम तुम्हारा रोशन होता।
सब कल्याण के भाव मन में,
कल्याण की हो भावना प्यारी।
परहित सरिस धर्म नहिं भाई,
कीर्ति उसको मिलती आई।
धूप छांव का जीवन सबका,
कभी प्रगति है कभी अवन्नति।
राजा रंक बने यहां हैं,
रंक को राजा बनते देखा।
बहती रहे समय की धारा
रिश्ते हुए मतलब के सारे,
वैसा ही माई बाप हुआ।
आपाधापी में तो देखो,
सारा जग है मस्त हुआ।
सब अपने अपने कर्म सुधारें,
जीवन हो प्रगति शील यहांँ।
मैं मेरा सब छोड़ चले,
संग गई किसके नहीं माया।
बहती रहे समय की धारा।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
30.5.2022
Rajeev pandey
01-Jun-2022 09:43 AM
Nice ✍️
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Shnaya
31-May-2022 09:20 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Rahman
31-May-2022 06:07 PM
Osm
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